20 February Social Science Subjective Original Questions Paper 2025: मैट्रिक वायरल क्वेश्चन पेपर 2025
20 February Social Science Subjective Original: नमस्कार दोस्तों यदि आप भी मैट्रिक बोर्ड परीक्षा 2025 में देने जा रहे हैं और आप लोग वायरल क्वेश्चन पेपर को खोज रहे हैं तो यह आर्टिकल आपके लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इस आर्टिकल में हम आप सभी को सामाजिक विज्ञान का वैसा क्वेश्चन देने वाले हैं तो सीधा परीक्षा में टकराने वाला है आप लोग इस क्वेश्चन को तैयारी कर लेते हैं तो आपका परीक्षा में हंड्रेड परसेंट लड़ेगा । यदि के छोटे भाई बहनिया आपके दोस्त मैट्रिक परीक्षा देने वाले हैं तो उनको या आर्टिकल शेयर जरूर करें ।
20 February Social Science 2025
प्रश्न 1. जैव विविधता क्या है? यह मानव के लिए क्यों महत्त्वपूर्ण है? विस्तार से लिखिए ।
उत्तर– प्राकृतिक वनस्पति-काई से लेकर बरगद तक या प्राणी जात अर्थात जीव जंतु-चींटी से लेकर हाथी तक तथा मौसम, जैसे ताप, वर्षा जलवायु इन सभी को मिलाकर जो चित्र हमारे मानस पर उभरता है, उसे जैव विविधता कहते हैं। जैव विविधता मानव के लिए इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि इससे मानव प्रत्यक्ष और परोक्ष, अनेक रूप से लाभ प्राप्त करता है। जैव विविधता से मानव के लिए भोजन, औषधियाँ, वस्वोत्पादन के लिए रेशे, रबर तथा गृहोपयोगी लकड़ियाँ प्राप्त होते हैं। (जैव विविधता) यह मानव के लिए निम्नलिखित कारणों से महत्त्वपूर्ण है: मानव जैव विविधता का उपयोग कृषि कार्य में करता है। इसी के चलते वह नयी- नयी किस्म का उत्तम किस्म के फसलें उगाता है, जिससे उपज बढ़ती है, एक मौसम में दो-से-तीन फसलें उगा लेता है। इससे देश की खाद्य समस्या सुलझती है। फसल ‘में कीड़े नहीं लगें, इसके लिए वह पीड़क नाशी का उपयोग करता है। मानव जो भी अपने भोजन में लेता है, वे सब जैविक विविधता के हिस्से हैं। नयी-नयी प्रजातियों के अन्न, सब्जी, जंतु आदि की खोज देश में वृद्धि पा रही जनसंख्या के भोजन के लिए सहायक बनते हैं। विकसित उत्तम नस्ल के पौधे और घरेलू पशु आधुनिक कृषि में बहुत सहायता प्रदान करते हैं। वन्य प्रजातियों का आनुवांशिकी (genes) का उपयोग कर नए गुणों के पशु पैदा किए जाते हैं। उदाहरण के लिए रोग रोधी पौधे तथा अधिक दूध देने वाली भैंसे या गायों की प्रजातियाँ समाज को सहायता प्रदान करती हैं। चार-चार रोगों से संरक्षण वाला आर्जिया निकारा प्रजाति का चावल विकसित किया गया है। जैव- विविधता का उपयोग अनेक औषधीय पौधों के उगाने में किया जाता है। क्यूनाईन (Quinine), टेक्सोल (Taxol) वृक्षों के ही उत्पाद हैं।
छत पर एकत्र जल को पाइपों के सहारे ‘टाँकों’ में पहुँचा दिया जाता है। वह जल पीने के काम आता था। अभी हाल में ही एक ‘टाँका’ गुजरात में मिला था। शायद सैकड़ों वर्ष पहले का वह टाँका होगा, लेकिन आज भी उसमें एकत्र जल पूर्णतः शुद्ध था और उसे पेयजल के रूप में व्यवहार किया जा सकता था।
प्रश्न 2. विस्तारपूर्वक बताएँ कि मानव क्रियाएँ किस प्रकार प्राकृतिक वनस्पति और प्राणीजात के ह्रास के कारक हैं।
उत्तर– प्राकृतिक वनस्पतियों तथा प्राणीजात जीवों का ह्रास तो मनुष्यों के पृथ्वी पर अवतरित होते ही आरम्भ हो गया था। आज के आविष्कार के बाद इनके ह्वास में कुछ तेजी आ गई है। कारण कि भोजन के लिए पशुओं का शिकार और उन्हें पकाने के लिए वनस्पतयों को काटने की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है। आदि मानव का आहार पकाया माँस ही मुख्य था। वैसे वे फल-मूल भी खाते थे। इधर उपनिवेशवाद और औद्योगिक क्रांति के बाद वनों का बड़े पैमाने पर विनाश शुरू हो गया। रेल के स्लीपर बनाने तथा भवन बनाने में बेतहाशा वनों की कटाई हुई। रेल के विस्तार के लिए भी जंगल काटे गए। इससे उस वन क्षेत्र में निवास करने वाले वन्य जीव या तो मार दिए गए या दूर भाग गए। जैसे-जैसे वन कटते गए वैसे-वैसे वन्य जीवों का प्राकृतिक बास स्थान सिमटता गया
आज की स्थिति यह है कि जनसंख्या की वृद्धि के कारण बढ़े हुए लोगों के खाने के लिए अधिक अन्न तथा अधिक आवास की आवश्यकता महसूस होने लगी। इसकी पूर्ति के लिए वनों को काटकर ही जमीन निकाली गई। कृषिगत भूमि और आवासीय जमीन प्राप्त की गयी। इससे प्राकृतिक वनस्पति तो समाप्त हुए ही, वन्य जीवों का भी तेजी से ह्रास हुआ। भारत में वनों के ह्रास का एक बड़ा कारण झूम खेती भी है। पूर्वोत्तर में झूम खेती की प्रथा प्राचीन समय से ही रही है। बहुत समझाने-बुझाने पर अब इस पर रोक लगी है। 1951 से 1980 के बीच लगभग 26,200 वर्ग किलोमीटर भारतीय वन क्षेत्र कृषि में बदल दिया गया। लगभग इसी हिसाब से वन जीव भी कम हुए होंगे।
हिरण, नीलगाय, खरगोश, भैंसा आदि के शिकार से माँस भक्षी जन्तु, जैसे बाघ, शेर, तेंदुआ आदि को भोजन की कमी पड़ी है, जिससे वे जंगलों के निकटवर्ती गाँवों में प्रवेश कर पालतू पशुओं और मनुष्यों पर हमला करने लगे हैं। दूसरी ओर मनुष्य भी चोरी-छिपे वन्य जीवों का शिकार करने लगे हैं। इससे आज वनों में अनेक वन्य पशु बाघ, सिंह, तेंदुआ, हाथी, गैंडा आदि की बेहद कमी महसूस हो रही है। खाल, हड्डी, दाँत और सिंग का चोरी-छिपे निर्यात होता है, जिनका महँगा मूल्य मिलता है।
प्रश्न 3. भारतीय जैव मंडल क्षेत्र की चर्चा विस्तार से कीजिए ।
उत्तर– भारत जैव विविधता के संदर्भ में विश्व के सर्वाधिक समृद्ध देशों में से एक है। हजारों वर्ष पूर्व से ही भारतीय वैज्ञानिकों ने जन्तुओं एवं पेड़-पौधों पर शोध करके इनकी एक लम्बी सूची तैयार कर उनके नाम और प्रजातियों की खोज की थी। इस्वी सन् की पहली सदी में ही आयुर्वेद के रचयिता चरक ने अपनी चरक सहिंता में 200 प्रकार के जन्तुओं, 340 प्रकार के पादपों का उल्लेख किया था। अभी भारत की गणना विश्व के 12 विशाल जैविक विविधता वाले देशों में की जाती है। भारत में विश्व की सम्पूर्ण जैव उपजातियों का 8 प्रतिशत तथा संख्या में लगभग 16 लाख पाई जाती है। इन सब बातों के बावजूद जैव विविधता के संदर्भ में अभी भी भारतीय वैज्ञानिक को बहुत कम वनस्पत तथा जन्तुओं का ज्ञान है। फिर भी भारत इस क्षेत्र में सम्बृद्ध है। भारत में सबसे अधिक जैव विविधता वाला क्षेत्र पश्चिमी घाट और उत्तर-पूर्वी भारत हैं। इनमें क्रमशः भारत का 4% और 5.2% भौगोलिक क्षेत्रफल है। फिर भी इन्हें विश्व के 25 हॉट स्पॉट में रखा गया है। इन क्षेत्रों में असंख्य प्रकार के जीव-जन्तु और पादप पाए जाते हैं। भारत में 33% पुष्पीय पौधे भारतीय मूल के हैं। ऐसे ही 53% स्वच्छ जल की मछली, 60% एम्फेवियन्स, 30% रेंगने वाली प्रजातियाँ तथा 10% स्तनपायी प्रजातियाँ भारतीय मूल के ही हैं। भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र, पश्चिमी घाट, उत्तर-पश्चिम हिमालय, अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह मुख्य रूप से देशज क्षेत्र के रूप में विख्यात हैं। कुछ पादप पश्चिमी घाट के ही हैं जो भारतीय मूल में अग्रणी स्थान रखते हैं। यूनेस्को के सहयोग से भारत में 14 जैवमंडल आरक्षित क्षेत्र की स्थापना की गई है। वे हैं: (i) नील गिरि, (ii) नन्दादेवी, (iii) नोकरेक, (iv) मानस, (v) सुन्दरवन, (vi) मन्नार की खाड़ी, (vii) ग्रेट निकोबार, (viii) सिमली पाल, (ix) डिबू साई केला, (x) दिहाँग- देबाँग, (xi) कंचनजंघा, (xii) पंचमढ़ी, (xiii) अगस्थ्यमला
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